राहें
हरदम टुकड़ों मे बँटी होती है जिनका अपना कोई ठौर नहीं होता, यह तो
किटकिटाते दाँत, तनीं मुठ्ठियाँ, सूजे फफोंलेदार तलवे और थकती हुई पर थकी
हुई नही - हथलियों का कमाल है जो पुलिया दर पुलिया बनाते,पहाड़ काटते
टुकड़े दर टुकड़े रास्तों को जोड़ कर नदी-नालों-समंदर के पार तक पहुँचा
डालते हैं-- और हम इन्हें मंजिल कहते हैं
Saturday, 29 September 2012
"
Every step that was taken, it was taken
as if the journey has to be stared a fresh
But then , if that happens to be the last
no post, n nothing remained unlashed
...
हर इँट जीवन में मैं यूँ रखता रहा,
कि हजारों मंजिलें और बनाउँगा मैं
गर अगली इँट जो न रख सका तो
इमारत कहीं से अधूरी न दिखै
See More
"
as if the journey has to be stared a fresh
But then , if that happens to be the last
no post, n nothing remained unlashed
...
हर इँट जीवन में मैं यूँ रखता रहा,
कि हजारों मंजिलें और बनाउँगा मैं
गर अगली इँट जो न रख सका तो
इमारत कहीं से अधूरी न दिखै
See Moreकि हजारों मंजिलें और बनाउँगा मैं
गर अगली इँट जो न रख सका तो
इमारत कहीं से अधूरी न दिखै
inutes ago
उनकी महानता के दावों को खारिज़ मैं क्यों करूँ,
वे मुझसे अधिक सफल हैं, बस इसीलिये -
हर सख्श को अपनी फटी चद्दर सी लेने का अधिकार है,
जिसने जितना जतन किया, चादर उतनी साबुत नजर आयी
तुम्हारी नजरों को धोखा किसने नहीं दिया,
किसने नहीं छिपाया अपने दागों को
किस किस ने नहीं किया दावा-जस की तस रख दीन्ही चदरिया
मैं क्य़ों उनकी फटी चद्दर के दाग दिखाउँ
शायद मैं भी उन्हीं में से एक हूँ
खोया हुआ मैं, कौन जानता, मैं क्या हूँ
वे मुझसे अधिक सफल हैं, बस इसीलिये -
हर सख्श को अपनी फटी चद्दर सी लेने का अधिकार है,
जिसने जितना जतन किया, चादर उतनी साबुत नजर आयी
तुम्हारी नजरों को धोखा किसने नहीं दिया,
किसने नहीं छिपाया अपने दागों को
किस किस ने नहीं किया दावा-जस की तस रख दीन्ही चदरिया
मैं क्य़ों उनकी फटी चद्दर के दाग दिखाउँ
शायद मैं भी उन्हीं में से एक हूँ
खोया हुआ मैं, कौन जानता, मैं क्या हूँ
Subscribe to:
Posts (Atom)