अरावली: खड़े-खड़े अपराधी हो गई!
अरावली पहाड़ सदियों से खड़े थे। न चुनाव लड़े,न भाषण दिए,बस चुपचाप रेगिस्तान रोकते रहे,पानी जमा करते रहे,हवा साफ़ करते रहे। यही उनकी सबसे बड़ी गलती थी।
आज के भारत में जो चुप रहता है वो या तो दोषी होता है या फिर परिभाषा के बाहर कर दिया जाता है।
अब बताया गया है कि हर ऊँचाई पहाड़ नहीं होती। 100 मीटर से कम? तो आप पहाड़ नहीं,यह आपकी गलतफहमी हैं।
अरावली अब “भूगोल” नहीं,कानूनी तकनीकी गड़बड़ी बन चुकी है। जिसे देखकर सिस्टम ने कहा “अरे,ये तो हमसे बच गया था।” अब सवाल ये नहीं कि अरावली क्यों कट रही है,सवाल ये है कि
इतने साल ये बच कैसे गई?
अगर अरावली नहीं होगी तो क्या होगा? कुछ खास नहीं। बस
* दिल्ली को रेगिस्तान का एक्सटेंशन मिल जाएगा
* पानी की जगह टैंकर कल्चर फलता-फूलता रहेगा और हम हर गर्मी में कहेंगे “इस साल तो गर्मी कुछ ज़्यादा ही है, है ना?”
लेकिन चिंता मत कीजिए। हम समाधान-प्रिय देश हैं। पहाड़ कटेंगे तो वेबिनार बढ़ेंगे। जंगल जाएंगे तो कॉन्फ्रेंस आएंगी।
अरावली अभी भी खड़ी है,बस अब वो पहाड़ नहीं मानी जाती और जब किसी चीज़ को मानना बंद कर दिया जाए,तो उसे बचाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। क्योंकि असली विकास वही है जहाँ प्रकृति मौजूद हो बस काग़ज़ों में नहीं।
अरावली पर्वतमाला को बचाओ
#SaveAravaliParwatmala