Saturday, 5 September 2020






 मेरी कानूनी समझ पर धार चढाई राम कृपाल बाबू ने।AIR पढ़ना सिखाया, समझना सिखाया और उसके गूढ़ रहस्य बताये। सिविल की प्लिडींग्स, मैनीपुलेसन की कला सिखाई, वे बड़े बेबाक थे। अपने पुत्रों के भी गुरु थे। पुत्रों को सिखाने का बडा प्रयास करते रहते थे।उनके पुत्र सम्भवत: मेरी उपस्थिति से असहज हो जाते थे। उन्हे जजों के पारस्परिक संबंध के बारे मे, जजों के चरित्र के बारे  मे बहुत ज्ञान था। वे उस समझ का उपयोग आवश्यकतानुसार करते थे।कानून की बहुत महीन दूरदर्शी समझ थी। कानून के औरंगाबाद मे चलते फिरते इण्साईक्लोपिडीया थे। क्रुर मजाक कर लेते थे।वकालत करने के पहले वे कडक जज थे, अनमनीय। वकील हूए तो वकालत के सारे गुणों से पूर्ण। जजों का दोहन करना वे खूब जानते थे। किसी भी निर्णय को देख सुन या किसी भौ कार्यवाही को देख, या किसो भी फाईल को देख वे सटीक   सम्भावित निष्कर्ष तक पहुंच जाते थे।सक्षम जूनियर उनकी कमजोरी थे। आलसी जूनियर पर वे कुढ़्ते थे।भाषा पर , कानून पर , सिविल और लैंड रेवेंयू विषयों पर  अधिकार था। उनकी ड्राफ्टिंग परफ़ेक्ट थी। उनकी बहस कानून से ही होती थी। वे चुटीली बहस करते थे। रंगबाजों से रंगबाजी से, बेशर्मों से बेशर्मी से पेश आते थे। उनका अपना दुर्भाग्य था कि उन्होने औरंगाबाद मे वकालत शुरु करी। यह औरंगाबाद का सौभाग्य था। पर औरंगाबाद में उनकी परम्परा को कोई आगे नहीं बढ़ा पाया। उनके लगातार नियमित सिरिस्ता में सुबह, शाम, छुट्टियों मे भी बैठने, पढ़ने के क्रम को कोई आगे नहीं बढ़ाया।वे कानूनी समझ मे बिहार स्तर के प्रखर विद्वान थे। अपनी सेवा काल में  उनकी प्रतिभा, मेरे ब्यक्तित्व में उनका योगदान, कानून पढ़ाने, सिखाने का उनका उत्साह बहुत याद आया।

 *कोई भी संरचना हो, कितनी भी उन्नत हो, विशाल या विस्मयकारी विलक्षण हो, उसके वर्तमान से विचलित हूए बिना उसको बनाने वाले हाथों, उस रचना के पीछे के विचार, उस रचना के कच्चे माल मे रुचि रखने वाले को प्रणाम।*

मेरे इतिहास में, मेरे गुरूजनों में आपकी रुचि प्रणम्य है।

दुधेश्वर बाबू ने धैर्य- ग्रामीण समझ, राजनैतिक चिन्तन दिया, साहस दिया, कचहरी की शक्तियों से परिचय करवाया, प्रत्यक्ष साथ दिया, अपना नाम दिया, अपनी संगति दी, मुझे ताकत दी, मुझे खड़ा किया।औरंगाबाद ला कालेज में ईन्ट्रोड्युस किया, रेफर किया, अवसर दिया, पहचान दी।बेसिक्ल्ली वे क्रिमिनल केसेस के प्रक्टिकल महीन तथ्य तक पहुंचने के मार्ग के सिद्ध हस्त पथ  प्रदर्शक थे।बड़े कठोर टीचर थे। बहुत कड़े अनुशासन के हिमायती है।छोटी सी गलती भी उन्हें अस्वीकार्य थी। पर  थोड़ा सा भी अच्छा प्रयास किसी का भी हो उसकी वे खुले हृदय से तारीफ वह भी सबके सामने, यहाँ तक की कोर्ट मे जज के सामने भी करते थे। उनका हृदय विशाल था। पर उन्हें सामन्ती प्रवृति से चिढ थी। उन्होंने दृढता से अप्रिय सत्य भी सामने वाले के मुँह पर  कहना सिखाया। वे वकालत के अपने आचरण और समाज-परिवार के अपने आचरण को अलग अलग रखते थे।अपने विरोधियों से , विरुद्ध विचार से, उनके कामों से कभी कोई घृणा नहीं थी, विरोध भर था और वह भी प्रकट विरोध। वकालत के पेशे में उन्हे कोर्ट से सांठगांठ करने का काम जरा भी पसंद नहीं था। इस काम से उन्हें घृणा थी। वे  कचहरी के कामों में शार्ट कट को देख समझ कर भी कभी उस तरफ न आकर्षित हूए न उन्होने कभी ऊन रास्तों की हिमायत की। वे विलक्षण हाजिर जबाब  थे। बड़ी कठोर बात बात करते करते कह जाते थे। उबलते या जमते नहीं ही थे। वकालत के पेशे मे हाथ गन्दा और लंगोट ढीला करने के अवसर बहुत आते है। वकालतखाने में सभी तरह के सद्स्य होते है। उन सब की संगति मे भी साफ सुथरा रह जाना उनकी विशेष कला थी। उन्होंने बताया कि कितना भी चरित्र हीन  लोलुप, क्रुर कोई क्यों न हो, यदि उसे मनसा वाचा कर्मणा देहयष्टि से आमंत्रित नहीं करोगे तो न वह तुमको ट्राई करेगा न अकारण आक्रमण। बिना किसी आधार/कारण कोई प्रस्ताव तक नहीं करेगा।

दुधेश्वर बाबू बेसिकली शालीन, सहनशील थे। बेवजह आक्रमकता उन्हे नहीं  सुहाती थी। बहस हो जिरह हो, समाजिक संबंध हो, राजनीति हो, वे कभी भी गैर आनुपातिक नहीं होते थे। जज साहबान का प्रिय होने का उन्होने कभी प्रयास नहीं किया। उनकी छवि एक निष्पक्ष आदर्श तथ्य परक वकील की थी।

हिन्दी मे अधिक सहज होते थे। अंग्रेजी केवल कचहरी तक सिमित।

मगही ही उन्हें अधिक प्रिय।

आगे चालू रहेगा---->>>>

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