Wednesday, 14 March 2018

माँ की गोद में पल-बढ़ जिस प्रमोद को देखा नटखट जवाँ
जवाँ को जो किया था रीता के हवाले,फुसलाते हुए, की है खिलौना

आज वह नटखट पौधा हूआ, वृक्ष, रीता का यूँ सँवारा हुआ
और खिलौना जिसे समझा था वो बहार, प्यार मनुहार हूई

दुनिया एक नई बसाते रहे हैं,फूल नित नये खिलाते रहे है
खुद उगे,सबको उगाये, इनके संग हम सब खिलखिलाते रहें है

इन्होंने जेसे पचीसवीं तक को संभाला, आशीश इन को रहे हमारा
हम सब की दुआओं से सजे रहे, इनकी परेशानियाँ हो हमारी

पच्चीसवीँ की उँचाई, कोई आखिरी नहीं होती,अभी और है बढ़ना
बढ़ेंगे रीता प्रमोद, हम सभी के प्यार से बस उपर ही चढ़ना

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